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तो सेक्टर 2 D के शापित महल मे 7 नमूने रहते थे…
लंबू, बड़े, फुर्रू, गोले, सेठ, बिन्नी, मौसी – लोग उन्हे कहते थे…
बड़े हमारे रोज़ Fair & Lovely लगते थे…
अपनी कोहनी को हर सुबे-शाम आईने मे निहारते थे…
“तेरी ओर.. तेरी ओर…” गाते थे…
पर बटेर बाज़ी करने का 1 भी मौका नही छोड़ते थे
बिन्नी तो घर की रौनक था…
पर उसे अपनी #### तुड़वाने का बहोत शौक था
बिन्नी के फंडे उसकी मुछो जीतने मशहुरे थे…
सेठ प्यार के मारे अपनी सोनेकी चैन देने को राज़ी थे
सेठ हम सब बच्चो को संभालते थे…
फिर भी सारे फ़ैसले हमीसे पुच्छ के लेते थे
ओर हां, सेठ घूमने के बड़े शौकीन थे…
शायद इसीलिए, पैदल कम, बाइक पे ज़्यादा पाए जाते थे
गोले गठान सबका चहेता था…
Infocity मे सहेलियो को घूमाता था…
बॅस्केटबॉल, सालसा, गिटार, कॉमन फंड – हर जगा उंगली करता था…
बिन्नी के कंधे पे रखके सेठ पे बंदूक चलाता था
मौसी हमारी बड़ी मजेदार थी…
सबको पता था ये पोलीयो की शिकार थी…
शायद इसीलिए -“सब कुछ सही सपाट?” – की धुन बजाती थी…
और हर रात को लॅपटॉप चुरा ले जाती थी
लंबू… साला दुखी आत्मा, रोज़ ‘लॉस’ करके आता था…
‘बाइ-सेल-सेप-डेक-टिक-मार्केट-बोनस…’से सब TCSers को बोर कर देता था…
पर हाँ –
कोई माँगे या ना माँगे, कुर्बानी ज़रूर देता था
जब वीकेंड्स पे सारी जनता इकटठी मिलती थी…
Cool-Point और NIFT के गल्ले पे ‘फ्रीकाउट’मचाती थी
और जब रात को “ओये! इट’स फ्राइडे!” वाली महफिले जमती थी…
मिलावट की दारू पीके पब्लिक ‘सेंटियापा’ मचाती थी…
लाइफ, जवानी, गुज्जु-लॅंड, बरबाद, फ्यूचर जैसी चीज़ो को हर बक्कर मे घुसाती थी…
टाइम बचा तो – ‘शैतान की बेटी’के किस्से रचाती थी…
और आखरी मे मौसी को नच्वाती थी
एक एक करके सारे पंछी उड़ गये…
घर के बुजुर्ग को ग@#$%नगर मे अकेला छोड़ गये…
अपनी अपनी लाइफ मे बिज़ी हो गये…
‘किप-इन-टच’की दुहाई देके Facebook के निवासी हो गये
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…Dedicated to g’nagar janta (ऐश करो कमींनो!!)
arrey bhai.. kya likha hai.. wah.. aankhon mein to paani aa gaye…
hehehe… tnx tnx … 🙂
Kya baat hain kavi phurru.,,, bahut badhiya likha hain.. binni Zara phurru ka para likhkar add kar do
Wah parab..!! maza aa gaya padh ke !! gandhinagar ki yaadein !!
thanks yaar!